समुद्रगुप्त: प्रारम्भिक जीवन, विजयें और उपलब्धियां, भारत का नेपोलियन

समुद्रगुप्त: प्रारम्भिक जीवन, विजयें और उपलब्धियां, भारत का नेपोलियन

Share This Post With Friends

Last updated on April 22nd, 2023 at 10:48 am

समुद्रगुप्त गुप्त वंश का एकमहान सम्राट था जिसने उत्तर से दक्षिण तक अपनी विजयों द्वारा मौर्य साम्राज्य के बाद अखंड भारत का निर्माण किया। वह गुप्त वंश को शिखर पर लेकर गया।भारत के इस वीर सम्राट के विषय में बहुत से ऐतिहासिक स्रोत हैं जो उसकी उपलब्धियों के साक्षात उदाहरण हैं।उसकी ऐतिहासिकता के लिए हमें प्रयाग प्रशस्ति से लेकर उसके सिक्कों तक का अध्ययन करना पड़ता है। इस ब्लॉग में हम समुद्र गुप्त की विजयों और उपलब्धियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगें। 

samudragupta indian nepolian

 

समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय सम्राट थे जिन्होंने गुप्त साम्राज्य के दौरान लगभग 335-380 सीई तक शासन किया था। वह गुप्त शासक चंद्रगुप्त प्रथम और उनकी रानी कुमारदेवी के पुत्र थे।

अपने शासन के तहत, समुद्रगुप्त ने सैन्य विजय और रणनीतिक गठजोड़ के माध्यम से गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी सैन्य विजय और उनके साम्राज्य के आकार के लिए उन्हें अक्सर “भारत का नेपोलियन” कहा जाता है। उसने कई पड़ोसी राज्यों को हराया और भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों पर अपना शासन स्थापित किया।

समुद्रगुप्त का जन्म 

समुद्रगुप्त के जन्म के विषय में इतिहासकार मौन हैं। कुछ इतिहासकारों ने समुद्रगुप्त का जन्म 335 ईस्वी में इंद्रप्रस्थ नामक  स्थान पर हुआ  बताया है। समुद्रगुप्त के पिता का नाम चन्द्रगुप्त प्रथम था

समुद्रगुप्त ( 350-375 ईस्वी ) गुप्त वंश का चौथा शासक था । सिंहासन पर बैठने के पश्चात् , उसने अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करने के लिए उसकी साम्राज्य की सीमा से बहार राज्यों और गणराज्यों को विजय करने का निर्णय किया । अपनी इन विजयों के कारण वह ‘भारत के नेपोलियन’ के रूप में विख्यात हैं।

वह वह महान योद्धा और विद्द्यानुरागि थे और उन्होंने गुप्त साम्राज्य के लिए एक मजबूत नींव रखी। गुप्त साम्राज्य के उदय और उसकी समृद्धि की शुरुआत का श्रेय समुद्रगुप्त की सैन्य विजयों और नीतियों को दिया जाता है।

समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी 

रामगुप्त और चन्द्रगुप्त दो पुत्र हुए। रामगुप्त समुद्रगुप्त की मृत्युपरांत शासक बना परन्तु वह निर्बल और कायर था। शकों के आक्रमणों में वह पराजित हुआ। इस अपमानजनक पराजय ने चन्द्रगुप्त को शासक बनने का मौका प्रदान कर दिया। अतः चन्द्रगुप्त ने रामगुप्त की हत्या करके राजगद्दी पर अधिकार कर लिया और रामगुप्त की पत्नी ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया और शकपति की भी हत्या कर राज्य को शकों से मुक्त करा लिया।

समुद्रगुप्त की पत्नियाँ और बच्चे

समुद्रगुप्त की पत्नियों के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनकी कम से कम दो पत्नियाँ थीं।

उनकी पत्नियों में से एक दत्तादेवी थी, जिनके बारे में माना जाता है कि वे उनके सहयोगी और मित्र, कामरूप के राजा की बेटी थीं। समुद्रगुप्त का दत्तादेवी के साथ रामगुप्त नाम का एक पुत्र था, जो बाद में गुप्त साम्राज्य के अगले शासक के रूप में सफल हुआ।

माना जाता है कि समुद्रगुप्त की दूसरी पत्नी ध्रुवदेवी नाम की एक महिला थी, जिन्हें महादेवी या महासम्मतदेवी भी कहा जाता है। वह मगध के राजा की बेटी थी और माना जाता है कि वह समुद्रगुप्त के दूसरे बेटे चंद्रगुप्त द्वितीय की मां थी, जो बाद में खुद एक महान सम्राट बना।

समुद्रगुप्त के और भी कई बच्चे थे, लेकिन उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। ऐसा माना जाता है कि उनकी प्रभावतीगुप्त नाम की एक पुत्री थी, जिसका विवाह वाकाटक वंश के एक शासक से हुआ था। हालाँकि, उनके अन्य बच्चों या उनकी माताओं के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

समुद्रगुप्त के विषय में ऐतिहासिक साधन 

प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त के विषय में सबसे विश्वसनीय स्रोत समुद्रगुप्त के संधिविग्रहिक सचिव हरिषेण द्वारा रचित इलाहबाद स्तम्भ लेख अथवा प्रयाग प्रशस्ति है। यह लेख मूलतः कौशाम्बी में खुदवाया गया था। इसके संबंध में दो तथ्य हैं —

१- मौर्य शासक अशोक का एक लेख खुदा जो ऊपरी भाग पर खुदा है और जिसे उसने कौसाम्बी में ख़ुदवाया था। 

२- चीनी यात्री हुएनसांग प्रयाग विवरण में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। वास्तव में मुग़ल शासक अकबर ने इसे कौसाम्बी से मँगाकर इलाहबाद के किले में सुरक्षित करा दिया।  इसमें अकबर के दरबारी कवि वीरबल का लेख भी मिलता है। 

 “इलाहबाद स्तम्भ लेख ब्राह्मी तथा विशुद्ध संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है”

“इलाहबाद स्तम्भ लेख (प्रयाग प्रशस्ति ) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ पद्यात्मक तथा बाद की गद्यात्मक हैं ।  प्रकार यह संस्कृत की चम्पू शैली का एक सुन्दर उदाहरण है।”

“प्रशस्ति की भाषा प्राञ्जल एवं शैली मनोरम है।”

एरण का लेख —एरण का लेख मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। इस अभिलेख में समुद्रगुप्त को कुबेर के समान दानी तथा यमराज के समान गुस्से वाला बताया गया है। समुद्रगुप्त की पत्नी  दत्तदेवी मिलता है। 

मुद्राएं —–समुद्रगुप्त के शासनकाल की कुल छः प्रकार की मुद्राएं मिलती हैं 

१- गरुड़ प्रकार की मुद्राएं –-इन सिक्कों के मुख भाग पर अलंकृत वेष-भूषा में राजा की आकृति, गरुड़ध्वज,  तथा मुद्रालेख ‘सैकड़ों युद्धों को जीतने वाला तथा शत्रुओं का मर्दन करने वाला अजेय राजा स्वर्ग को जीतता है उत्कीर्ण मिलता है। 

“समरशत विततविजयोजितरिपुरजितो दिव जयति”

२- धनुर्धारी प्रकार के सिक्के –  इन सिक्को के मुख भाग पर सम्राट धनुष-बाण लिए हुए  तथा मुद्रालेख ‘अजेय राजा पृथ्वी को जीतकर उत्तम कार्यों द्वारा स्वर्ग को जीतता है।’

३- परशु प्रकार के सिक्के — मुख भाग पर बाएं हाथ  परशु धारण किये हुए राजा का चित्र तथा मुद्रालेख ‘कृतांत परशु राजा राजाओं का विजेता तथा अजेय है।’

४- अश्वमेध प्रकार के सिक्के -इन सिक्कों में समुद्रगुप्त को अश्वमेध यज्ञ करते हुए दिखाया गया है। 

५- व्याघ्रहनन प्रकार के सिक्के –  सिक्कों में सम्राट को वाघ का शिकार करते हुए दिखाया गया है। 

६- वीणावादन प्रकार  के सिक्के — इन सिक्कों में सम्राट को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। 

समुद्रगुप्त का विजय अभियान

आर्यवर्त का प्रथम युद्ध -अभियान के इस क्रम में उसने सबसे  पहले उत्तर भारत के तीन राजाओं को पराजित किया, उसकी इन विजयों का उल्लेख प्रशस्ति की तेरहवीं तथा चौदहवीं पंक्ति में मिलता है। 

अच्युत — यह एक नागवंशी  था जो वर्तमान बरेली ( अहिच्छत्र ) में स्थित रामनगर नामक स्थान से इसकी पहचान की जाती है। 

नागसेन — ऐतिहासिक स्रोतों में यह भी नागवंशी  राजा था जो ( ग्वालियर जिले में स्थित पद्मपवैया ) में शासन करता था। 

कोतकुलज — यह सम्भवतः  दिल्ली और पंजाब मध्य शासक था। 

२- दक्षिणापथ का युद्ध – दक्षिणापथ यानि उत्तर विंध्य पर्वत  से दक्षिण में कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच का प्रदेश। प्रयाग प्रशस्ति की 19वीं पंक्ति तथा बीसवीं पंक्ति में दक्षिण  बारह राजाओं और राज्यों  के नाम मिलते हैं जिन्हें समुद्रगुप्त ने पराजित किया। इन राजाओं को जीतने के बाद समुद्रगुप्त ने स्वतंत्र कर दिया। 

दक्षिण के उन राज्यों की नाम इस प्रकार मिलते हैं —

१- राजा महेंद्र ( कोसल का राजा ( आधुनिक रायपुर विलासपुर मध्य प्रदेश तथा सम्भलपुर उड़ीसा )

२- व्याघ्रराज ( महाकांतार का राजा ९ उड़ीसा स्थित जयपुर का वन प्रदेश )

३ – मंटराज ( कौराल का राजा )

४- महेन्द्रगिरि ( पिष्टपुर का राजा )

५- स्वामीदत्त ( कोट्टूर का राजा )

६- दमन ( एरंडपल्ल का राजा ) 

७- विष्णुगोप ( काञ्ची का राजा )

८- नीलराज ( अवमुक्त का राजा )

९- हस्तिवर्मा ( वेंगी का राजा )

१० – उग्रसेन ( पालक्क का राजा )

११ – कुबेर ( देवराष्ट्र का राजा )

१२ – धनञ्जय ( कुस्थलपुर का राजा ) 

३- आर्यावर्त का दूसरा  युद्ध- दक्षिण के अभियान से निपटने के बाद समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत में फिरसे एक युद्ध किया जिसे आर्यवर्त का दूसरा युद्ध कहा गया है।  इस अभियान में समुद्रगुप्त ने दक्षिण की नीति ( ग्रहणमोक्षानुग्रह ) से इतर निति अपने और उत्तर के राज्यों को विजय कर अपने राज्य में मिला लिया। इस क्रम में उसने नौ राजाओं को परास्त किया — रुद्रदेव, मत्तिल, नागदत्त, चन्द्रवर्मा, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नन्दि और बलवर्मा। 

४-आटविक राज्यों की विजय – इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से लेकर मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले तक के फैले सभी  वन प्रदेश के राज्यों की विजय किया। 

५- सीमावर्ती राज्यों की विजय – पांच सीमावर्ती राज्यों को विजय कर उन्हें अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया – समतट (अधुनिक बंगला देश ), डवाक, कामरूप, करत्तपुर और नेपाल। 

  • पाटलिपुत्र समुद्रगुप्त के विशाल राज्य की राजधानी थी। 

समुद्रगुप्त के कुछ अधिकारी 

  • संधिविग्रहिक – संधि तथा युद्ध का मंत्री 
  • कुमारात्य – एक उच्च पदाधिकारी जैसे आधुनिक समय में आईएएस। 
  • खाद्यटपाकिक – राजकीय भोजनालय का अध्यक्ष 
  • महादण्डनायक -पुलिस विभाग का प्रधान अधिकारी व् न्याय विभाग का प्रमुख 

इतिहासकार स्मिथ ने समुद्रगुप्त की असाधारण सैनिकक्षमता और विजयों से प्रभावित होकर उसे ‘भारत के नेपोलियन’ की संज्ञा दी है। 

  • वह कविराज के नाम से भी प्रसिद्ध है। 
  • वह वीणावादक था। 
  • प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबन्धु के अपना मंत्री नियुक्त किया था। 
  • वह ब्राह्मण धर्म का संरक्षक एवं अनुयायी था। 
  • समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्तदेवी मिलता है।

समुद्रगुप्त  के विषय में कुछ तथ्य

1- वे असली महाराजाधिराज थे
2. वे कला के महान संरक्षक थे
3. उसने सात अलग-अलग प्रकार के सिक्के जारी किए
4- उनके शासन काल को भारत का स्वर्ण युग (स्वर्ण युग) कहा जाता था
5. उनका पूरा शरीर युद्ध के घावों से ढका हुआ था
6. उसने अपने समय की सबसे बड़ी सैन्य सेना तैयार की
7. वह अपने धर्म का दृढ़ता से पालन करता था
8. उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया
9. उनकी तुलना नेपोलियन बोनापार्ट से की गई थी

समुद्रगुप्त का मूल्यांकन

समुद्रगुप्त भारत में गुप्त वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक था। वह चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र और चंद्रगुप्त द्वितीय के पिता थे। समुद्रगुप्त ने 335-375 AD तक शासन किया और इसे प्राचीन भारत के महानतम शासकों में से एक माना जाता है। उनके शासनकाल को अक्सर भारत का “स्वर्ण युग” कहा जाता है।

समुद्रगुप्त एक महान सैन्य रणनीतिकार थे और उन्होंने कई सफल सैन्य अभियानों के माध्यम से गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया। उसने कई पड़ोसी राज्यों को पराजित किया और गुप्त साम्राज्य का सबसे बड़ी सीमा तक विस्तार किया। उन्हें कला और विज्ञान के संरक्षण के लिए भी जाना जाता था। वह स्वयं एक कवि थे और उन्होंने अपने राज्य में साहित्य और कला के विकास को प्रोत्साहित किया।

समुद्रगुप्त अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए भी जाने जाते थे। माना जाता है कि वह एक धर्मनिष्ठ हिंदू थे, लेकिन उन्होंने अन्य धर्मों का भी सम्मान किया और उन्हें अपने राज्य में फलने-फूलने दिया। कहा जाता है कि उनका बौद्ध धर्म के प्रति बहुत सम्मान था और माना जाता है कि उन्होंने बौद्ध मठों का संरक्षण किया था।

अंत में, समुद्रगुप्त एक महान शासक था जिसने सैन्य अभियानों के माध्यम से गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया और अपने राज्य में साहित्य और कला के विकास को प्रोत्साहित किया। वह अपनी धार्मिक सहिष्णुता और अन्य धर्मों के प्रति सम्मान के लिए भी जाने जाते थे। उनका शासनकाल भारतीय इतिहास में सबसे महान में से एक माना जाता है।

  


Share This Post With Friends

1 thought on “समुद्रगुप्त: प्रारम्भिक जीवन, विजयें और उपलब्धियां, भारत का नेपोलियन”

Leave a Comment

Discover more from 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading